मणिका और अबराम का मिलन
मणिका और अबराम
मणिका की उम्र रही होगी लगभग 21 साल जब हमने उसे पहली बार देखा था , एक नुक्कड़ नाटक में, तब भी वो एक ऐसा स्ट्रीट प्ले कर रही थी जिसमें उन सब बातों का ज़िक्र था जहां समाज में बंदिशों का बोलबाला बढ़ जाता है। यह किरदार राजस्थान के शेखावाटी प्रदेश में ही एक ऐसी जगह का हैं जो अर्ध रेगिस्तानी हैं मगर शिक्षा के क्षेत्र में प्रदेशभर में यहां से निकलने वाले बच्चों और सरकारी कर्मचारियों-अधिकारियों की संख्या प्रदेश के हर एक ज़िले में देखने को मिल जायेगी ।
ऐसा मुमकिन तभी होता है जब उस ज़िले के अधिकांश सरकारी पद भरे जा चुके हैं। मणिका एक बहुत जागरूक किस्म की लड़की हैं और अपनी प्राथमिक शिक्षा जिला मुख्यालय से ही पूरी करके भारत की राजधानी की ओर प्रस्थान कर लेती हैं । स्कूल के दिनों से ही मणिका का दोस्त है जिसका नाम है अब्राहम। यह क्षेत्र जातिवाद और धर्मभेद के बंटवारे से बहुत आगे निकल चुका है। लोग एक- दूसरे में जाति के नाम पर और धर्म के नाम पर इतना तवज्जो नहीं देते हैं। यहां से हजारों की संख्या में देश की सेनाओं, अर्धसैन्य बलों, पुलिस और सरकार के प्रमुख विभागों में जवान , कर्मचारी और अधिकारी ईमानदारी से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। वे इस भेद को छोड़कर आगे बढ़े हैं क्योंकि उन्होंने सबसे पहले चुना है अपना वतन जिस पर वे मर मिटने की ज़िद कर बैठते हैं। शेखावाटी प्रदेश में रेगिस्तान अपने तेवर समय -समय पर दिखाता ही रहता है।
यहां के लोग अनचाही आंधियों, भीषण गर्मियों और कड़कड़ाती सर्दियों में अपने आप को चट्टानों की तरह मजबूती से पकाते हैं। इस क्षेत्र के अधिकांश गांवों में शहीद सैनिकों के स्मारक बने हुए हैं। हजारों की संख्या में वीर- विरांगनाओं का यह प्रदेश देश के होने की कीमत समझते हैं क्योंकि देश प्रेम की भावना से ओतप्रोत अपने पतियों, अपने बच्चों, अपने भाइयों को यहां की शहीद सैनिकों की पत्नियों ने, मांओं ने और बहनों ने अपने आप को सिंचित किया है। वे हर पल उनके न होने की बेचैनी को हृदय पर पत्थर रखकर बस छुपा लेती हैं कि कोई ओर बहादुर सैनिक उनके दुखड़े जानकर अपने क़दम कही वापस न खींच लें। देश की सुरक्षा को वे सबसे पहले समझती हैं , यहां अगर आप धरातल पर गांव -गांव जायेंगे तो जानेंगे कि यहां से कोई ऐसी जाति नहीं बची हैं जिनके घरों से बच्चे शहीद न हुएं हो ! यहां से देश की सेनाओं में जाने वाले हिंदू -मुस्लिम सैनिकों की तादाद सबसे ज़्यादा ही मिलेगी क्योंकि यहां प्रबल भावना देश प्रेम की हैं , देशभक्ति की हैं न कि धर्म और मज़हब की हैं।
उसी धरती पर पलती हैं एक ऐसी नायिका जो अब किशोरावास्था की दहलीज पार करने को हैं। उसे नहीं पता है उसे दोस्त धर्म के आधार पर बनाने हैं या अपनी नैसर्गिकता के हिसाब से। उसे नहीं बताया गया था क्योंकि शायद ज़रुरत भी नहीं थी एक बालमन को किसी अपराधबोध से परिचित करवाने की । यहां का माहौल भी बिल्कुल ऐसा नहीं है कि फला व्यक्ति तो मुस्लिम है और तुम हिंदू हो! यह भेदभाव यहां शायद पैर नहीं पसार पाया है। लोग एक -दूसरे की हमदर्दी को गहराई से समझते हैं, ज़रूरत के वक्त एक- दूसरे के संकट में काम आते हैं।
दोनों समुदायों के बच्चे हंसी- खुशी साथ में खेलते हैं। स्कूलों -कॉलेजों में साथ -साथ पढ़ते हैं। किसी को कोई ऐतराज़ नहीं है! इसी माहौल की परवरिश में मणिका का बचपन बीता है और इसी सुनहरे बचपन ने उसे उसके जैसा ही एक दोस्त दिया है जो बहुत सीधा है। दोस्ती अगर जाति -धर्म के आधार पर की होती तो शायद अभी के एक- दो सालों में लड़खड़ा जाती। मगर यहां दोस्ती की नींव में था यहां का वातावरण जो यहां के सैनिक परिवार, जाट समाज का बाहुल्य होने की वजह से यहां कभी साम्प्रदायिक दंगे नहीं भड़कते क्योंकि यहां किसी हिंदू के घर में कोई मौत हो जाएं तो मुस्लिम भी रोते -रोते घर आतें हैं, एक दूसरे के घर के कामकाजों में लोग सबकुछ बगल में रखकर हाथ बंटाते हैं। आपस का यह वातावरण मणिका और अबराम के लिए कोई रूकावट पैदा नहीं कर रहा था , सब जानते ही थे कि यहां धर्म के चश्मे से रिश्तों को देखने का रिवाज़ ही नहीं था। इस माहौल में मणिका और अबराम की दोस्ती प्यार में बदल गई, दोनों की सहमति और कंफर्ट जोन ने भविष्य में साथ- साथ जीने के सपने संजोए लिए।
मणिका अपनी बारहवीं की पढ़ाई पूरी करके देश की राजधानी दिल्ली चलीं गईं। दिल्ली दिलवालों की है लेकिन मणिका यहां केवल शिक्षा के मक़सद से ही आयी थी । दिल्ली का माना हुआ विश्वविद्यालय परिसर जो देश भर में चर्चित रहता है, के माहौल में मणिका पूरी तरह से रम जाती हैं । अबराम तो वहीं पर है, उसकी पारिवारिक मजबूरियां कुछ ऐसी है कि वो मणिका तक जा नहीं सकता था लेकिन दिल तो बस मणिका के लिए ही अब धड़कता था।
धीरे-धीरे साल दर साल गुज़रते गये । दोनों की उम्र बिल्कुल वयस्क हो चुकी थी । मणिका दिल्ली से जब भी अपने घर आती हैं तो समय निकालकर उसने अपने सभी दोस्तों को इकट्ठा करके एक ग्रुप बनाया दिया । यह ग्रुप शहर के गली मोहल्लों में नुक्कड़ नाटक करके समाज के ऐसे मुद्दों पर चुप्पी तोड़ता हैं जिन पर लोग बोलने से अब भी बड़े कतराते थे । मणिका के इस ग्रुप में अबराम भी था लेकिन इस ग्रुप की असली नायक तो मणिका ही थी । मणिका ने देश के जाने माने विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की थी और समयांतराल में विकसित हुई उसकी सोच को अपने इस शहर में बहुत व्यावहारिक तौर पर लागू करने का जबरदस्त प्रयास किया।
शहर के लोग ग्रुप की इस रचनात्मक पहल को देखकर चंदा भी देने लगे , पढ़ें लिखें लोग अपने घरों से निकल -निकल कर उनको बड़ा प्रोत्साहित करने लगे , किसी ने भी उनका कभी कोई विरोध नहीं किया बल्कि जिसको भी पता चला उन सबने उनके प्रयासों को मुक्तकंठ से सराहा। गली मोहल्लों में मणिका के नाम से नारे लगते रहे लेकिन मणिका ग़रीब बच्चों, बकरियों, ग्रामीण महिलाओं और अपने इस अर्ध रेगिस्तानी प्रदेश से बड़ा प्यार करती थी ।
अबराम और मणिका अब एक ऐसे दौर में आ चुके थे जब देश में ऐसी शादियों को बिना किसी आधार के ही जेहाद से जोड़ दिया जाता है। मणिका देश के संविधान में अटूट विश्वास करती हैं , यकीनन वो वह प्रकृति से भी बहुत प्रेम करती हैं इसलिए कभी कभार वो शहर के बाहर पहाड़ियों पर अपने दोस्तों के साथ घूमने चली जाती है। चट्टानों पर घंटों भर तक बैठे -बैठे गप्पे लड़ाने में और इस दुनिया को एक अलग ढंग से देखने के असंख्य विचार उसके दिमाग़ को कभी शान्त नहीं होने देते हैं।
मणिका गली मोहल्लों के गरीब परिवारों के बच्चों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए जागरूक करती हैं और वहा भी नुक्कड़ नाटक करके उन बच्चों को जो शिक्षा से कोसों दूर हैं उनके मन में पढ़ने लिखने का जज़्बा पैदा करती है। अबराम हर एक काम में हमेशा उसके साथ ही रहा लेकिन किसी ने भी कभी उन्हें धर्म के नजरिए से नहीं देखा । यह वहां के लोगों की जिंदादिली ही है कि वे एक इंसान को एक इंसान के तौर पर मानने को सहर्ष तैयार हैं। अबराम बिल्कुल शांत स्वभाव का लड़का है और मजहब विशेष से कोई ख़ास लगाव नहीं रखता है , वैसी ही मानसिकता है मणिका की , आजकल अधिकतर युवा अधार्मिक रूख करने लगे हैं, सदियों पहले भारत में चार्वाक दर्शन की काफी आलोचनाएं हुईं हैं। चार्वाकों का मानना था कि जो उन्हें दिखता नहीं उस वे विश्वास नहीं करते थे ।
आजकल के शिक्षित युवा , देश में बढ़ती शिक्षा दर से लोगों में एक समझ पैदा हुई हैं कि इंसान को इंसान समझें। उन्हीं विचारों को बल देती मणिका के लिए देश सर्वोपरि है धर्म नहीं, मणिका स्थानीय संस्कृति और रीति रिवाजों के प्रति आकर्षित ज़रूर होती है लेकिन वैचारिक संकीर्णता उसे अच्छी नहीं लगती है। मणिका की हर बात में अबराम की हमेशा हां ही होती है क्योंकि शुरू से ही मणिका पढ़ने लिखने में भी होशियार होती है। छोटे मोटे काम करने के मामले में अबराम का कोई सानी नहीं। हर मुश्किल परिस्थिति में अबराम मणिका के साथ ही रहा ।
फिलहाल देश भर में एक तरफ़ सम्प्रदायवाद ने लोगों के दिलों में ज़हर भरने का काम किया है। हालिया राजनीति ने इस आग में घी डालने का काम किया है लेकिन यह क्षेत्र अभी भी सद्भावना और सौहार्दपूर्ण वातावरण से परिपूर्ण हैं। मणिका और अबराम ने जब शादी के लिए अपने -अपने घर पर यह खबर दी तब माहौल अचानक बदल सा गया । सालों से बदलें हालात पलभर में ही पलट कर रह गये। यह खबर आग की तरह समाज और उनके दोस्तों के बीच में फ़ैल गई कि अबराम और मणिका शादी करने जा रहे हैं। हाल फिलहाल के माहौल से कुछ दोस्तों ने मणिका पर फब्तियां भी कसी लेकिन मणिका शुरू से ही अपने इरादों पर अडिग रही। भारत जैसे धार्मिक देश में हालांकि संविधान की दृष्टि में हम एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है यानि कि सरकार की प्राथमिकता में कोई भी धर्म नहीं रहेगा और न ही कोई विशेष सहयोग किया जायेगा और न ही कोई किसी प्रकार का हस्तक्षेप होगा।
आज के माहौल में सने कुछ दोस्तों ने इस घटनाक्रम को अच्छा नहीं बताया , किसी ने जाति का , किसी ने धर्म का नाम डूबाने के आरोप लगाएं। एक दौर ऐसा भी आया कि मणिका के पिता और भाई , उनका पूरा परिवार मणिका के खिलाफ हो गये । लेकिन मणिका तो एक पढ़ी लिखी लड़की है जो किसी बहकावे का कभी शिकार नहीं हो सकती है और उसने जो निर्णय लिया था वो सोच समझकर ही लिया था। परिवार में मां के अलावा मणिका को किसी का कोई सहयोग नहीं मिल रहा था , हालांकि किसी ने किसी भी तरह का कोई उत्पीडन तो नहीं किया लेकिन व्यावहारिक रूप में कोई सहयोग नहीं कर रहे था । मतलब कि जो आमतौर पर लड़कियों के साथ होता है यह खबर फैल जाने के बाद की उनकी लड़की एक मुस्लिम युवक से शादी करने जा रही है।
यह शेखावाटी प्रदेश की सहनशीलता और राष्ट्रप्रेम का प्रतीक ही है कि उन्होंने एक लड़की के इस क़दम पर कोई नकारात्मक क़दम नहीं उठाए। मणिका की मां ने मणिका की बातों को जानकर कि यह लड़की बहुत इंटेलेक्चुअल हैं और यह देश , समाज , शिक्षा , रूढ़ियां, राजनीति, आज के युवा, देश की ग़रीबी , पूंजीवाद के दुष्प्रभाव और सामाजिक बुराइयों को भलीभांति समझती हैं और लगातार उनमें बदलाव के लिए अपने स्तर पर अनेक रचनात्मक प्रयासों को अंज़ाम देती हैं तब उसकी मां उसका साथ देती हैं।
दोनों ने तय कर लिया था तो एक दिन मणिका अपनी मां को साथ में लेकर जिला सेशन कोर्ट में पहुंच गई, उधर से अबराम भी नियत समय पर आ गया। मणिका और अबराम ने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत् कोर्ट में शादी पर सहमति व्यक्त की और दोनों ने अपने वैवाहिक जीवन की शुरुआत की। स्पेशल मैरिज एक्ट में दोनों में किसी को भी अपना धर्म परिवर्तन करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
उसकी मां ने एक नायक की जो भूमिका अदा की वो किसी छुपा नहीं है। भारत में पुरूष समाज का दबदबा हैं और इस दबदबे को धत्ता बताते हुएं मणिका की मां सुमित्रा जी ने देश की महिलाओं के लिए एक बहुत बड़ा संदेश दिया है। मणिका ने आज के माहौल को देखते हुए अपनी सुरक्षा की फिर भी गुहार लगाई है और कोर्ट ने उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए दो बंदूक धारी जवान उनके आसपास खड़े कर दिए हैं।
रक्षित परमार


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