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क्यों नफ़रत से भरी हुई है ये मानव प्रजाति?

क्यों नफ़रतों से भरी हुई है मानव प्रजाति (होमो सेपियंस ) ? अगर आप गांवों से संबंध रखते होंगे तो धर्म का मतलब कुछ अलग ही है जैसे कि साधू संत , लोक कलाकारों को अनाज देना , उन्हें भोजन करवाना, कपड़े और थोड़े बहुत पैसे दे देना , पक्षियों को दाना , पानी के लिए कुण्ड और परिंडे लगाना , गांवों में हजारों की संख्या में चबूतरे बने हुए हैं , पशुओं में खासकर कुत्तों को रोटी खिलाना , गायों को चारा डालना , लोगों के दान पुण्य का सबसे ज़्यादा खर्च शायद इन दो प्रजातियों पर ही होता है। हाथी भी इनके इर्द गिर्द ही स्थान रखता है लेकिन हाथियों की संख्या भारत में दिनोंदिन अब कम होती जा रही हैं । यह एक अलग बात है कि वैसी ही दया हम अन्य पशुओं पर नहीं करते हैं। दरअसल वो प्रचलन में नहीं है इसलिए हो सकता है हम अन्य पशुओं के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करते हो ! हम सबका दृष्टिकोण अलग -अलग हो सकता है,भारत के अलग -अलग राज्यों में संभावनाएं है कि वे अन्य जानवरों का भी कुछ इसी तरह सामाजीकरण कर पाएं हो लेकिन मनुष्य की सामाजिकता के ये दो जानवर अत्यंत नजदीक आएं है।  ग़ौरतलब है कि पशुपालकों के लिए वो पशु ज़्यादा महत्वपूर्ण ...