आने वाली पीढ़ी के लिए ‘हमारी धरोहरों’’ का संरक्षण आवश्यक है।
आने वाली पीढ़ी के लिए ‘हमारी धरोहरों’’ का संरक्षण आवश्यक है।
18 अप्रेल 2023, विश्व विरासत दिवस के अवसर पर भारतीय लोक कला मण्डल, उदयपुर में सांस्कृतिक निधी न्यास, उदयपुर स्कन्ध (इंटेक) के संयुक्त तत्वावधान में हमारी धरोहर विषय पर संगोष्टी का आयोजन हुआ जिसमें विद्धवानों ने हमारे देश की बहुमूल्य धरोहर को आने वाली पीढ़ी के लिए संरक्षित करने पर जो़र दिया।
भारतीय लोक कला मण्डल,उदयपुर के निदेशक डाॅ. लईक हुसैन ने बताया कि आज पूरे विश्वभर में 18 अप्रैल को विश्व विरासत दिवस के रूप में मनाया जा रहा है और इसी क्रम में भारतीय लोक कला मण्डल, उदयपुर में सांस्कृतिक निधी न्यास, उदयपुर स्कन्ध (इंटेक) के संयुक्त तत्वावधान में हमारी धरोहर विषय पर संगोष्ठी का आयोजन भारतीय लोक कला मण्डल के गोविन्द कठपुतली सभागार में दोपहर 03 बजे से किया गया। जिसमें शहर के साहित्यकार, कलाप्रेमी, इतिहासकार, विद्यार्थियो एवं आम जन ने भाग लिया।
उन्होंने बताया कि संगोष्ठी के प्रारम्भ में संस्था के मानद सचिव सत्य प्रकाश गौड़, भारतीय लोक कला मण्डल के निदेशक डाॅ. लईक हुसैन, सांस्कृतिक निधि न्यास, उदयपुर स्कंध के संयोजक डाॅ. ललित पाण्डे ने कार्यक्रम में आए अतिथियों का माला एवं शाॅल ओढाकर स्वागत किया उसके पश्चात गणमान्य अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरूआत की। शुरूआत में भारतीय लोक कला मण्डल के निदेशक डाॅ. लईक हुसैन ने कार्यक्रम की रूप रेखा प्रस्तुत करते हुए बताया कि हमारे देश में कई प्रकार की मूर्त और अमूर्त धरोहर है जो अभी विश्व धरोहर की सूची में सम्मलित नहीं है हमे ऐसी धरोहारों का चिन्ह्ति कर संकलित एवं संरक्षित करने की आवश्यकता है। उन्होंने विश्व धरोहर दिवस की शुरूआत के बारे में बताया कि 18 अप्रैल को प्रथम बार वर्ष 1982 को इंटरनेशनल काउंसिल आफ मोनुमेंटस एण्ड साइट के द्वारा मनाया गया और वर्ष 1983 में युनेस्कों महासभा ने इसे पूरी तरह मान्यता दी तब से ही पूरे विश्वभर में 18 अप्रेल को विश्व विरासत दिवस के रूप में मनाया जाता है। जिसका मुख्य उद्धेश्य दुनियाभर में मानव इतिहास से जुड़े ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक एवं कलात्मक स्थलों एवं कलाओं को संरक्षित करना है।
डाॅ हुसैन ने बताया कि संगोष्ठी में शहर के विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों ने अपने उद्बोधन दिये जिसमें डाॅ. पामिल भण्डारी ने कहा कि भारत में संगीत की परम्परा भी हमारी धरोहर है यहाँ प्रचीन काल से ही संगीत को बहुत महत्व दिया गया है हमें शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ लोक संगीत को भी संरक्षित करने की आवश्यकता है। , श्री कृष्णेन्दु साहा ने ओडिसी नृत्य की उत्पत्ति पर प्रकाश डालते हुए बताया कि भारतीय नृत्य परम्परा में ओडिसी नृत्य पराम्परा है एवं उन्होंने इसके महत्व पर प्रकाश डाला तथा ओडिसी नृत्य की प्रस्तुति भी दी। दिनेश कोठारी ने चित्रकला के बारे में बताते हुए कहा कि यह कला संभवतः मानव इतिहास की सबसे प्राचीन कलाओं मेे से एक है क्योंकि आदिकाल से ही हमें मानव द्वारा बनाये गये शैल चित्रों के कई उदाहरण मिलते है। और इस तरह की चित्रकारी की परम्परा आज भी हमारे गाँवों में जीवित है। यह हमारी अमूल्य धरोहर है। श्रीमती श्रृद्धा गट्टानी ने हमारी धरोहर के बारे में बताते हुए कहा कि धरोहर के विविध रूप हमारे आसपास है। हमें इस परम्परा को बनाए रखना है। हमें हमारी इन धरोहरों को संरक्षित रखने के साथ साथ इनकी उचित देखभाल भी करनी चाहिए। डाॅ. महेश शर्मा ने धरोहर का संरक्षण समकालीन समाज के अनुरूप होने पर ही संभव होने की बात कहीं तो शहर के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं कवि श्री किशन दाधीच एवं श्री गोविन्द माथुर ने भारत में ऐतिहासिक काव्य परम्परा के उदहारण देते हुए कहा कि भारत की लोक काव्य परम्परा हमारी अमूल्य धरोहर है इसे आने वाली पीढ़ी को अवगत कराने की जिम्मेदारी भी हमारी है अतः हमें इस परम्परा को संकलित कर संरक्षित करना चाहिए। इस अवसर पर सांस्कृतिक निधी न्यास, उदयपुर स्कंध के संयोजक डाॅ. ललित पाण्डे ने बताया कि वर्तमान समय में विरासत कालीन स्थलों के संरक्षण में जलवायु की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने बताया कि हज़ारों सालों पूर्व बने किले, महल, बावड़ियों पर जलवायु का प्रभाव पड़ता है। और जलवायु के अनुरूप ही स्मारकों को संरक्षित किया जाना चाहिए। इसके साथ ही गोल्बल वार्मिंग से पुरास्मारको पर होने वाले प्रभाव के बारे में जानकारी दी। इसके पश्चात गणमान्य अतिथियों द्वारा भारतीय लोक कला मण्डल उदयपुर द्वारा लोक कला, लोक संस्कृति, लोक साहित्य, लोक नाट्य एवं कठपुतली कला आदि विषयों पर आधारित ‘‘रंगायन’’ पत्रिका के 2022 के अंक का विमोचन किया गया। कार्यक्रम में अरूण चतुर्वेदी, डाॅ. प्रेम भण्डारी, डाॅ. रचना तैलंग, डाॅ. इकबाल सागर, उग्रसेन राव, मोहन श्रीमाली, डाॅ. तराना परवीन आदि गणमान्य विद्धान उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में सांस्कृतिक निधि न्यास, उदयपुर स्कंध के सह संयोजक गौरव सिंघवी ने संगोष्ठी में पधारे सभी वक्ताओं, अतिथियों एवं आमजन का धन्यवाद ज्ञापित किया।
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