यूक्रेन पर हमला क्या शांति प्रिय देशों के लिए ख़तरा ??

 


यूक्रेन पर हमला शांति प्रिय देशों के लिए ख़तरा


रूस के द्वारा यूक्रेन पर हमले को एक नई लड़ाई के तौर पर देखना चाहिए , एक तरफ़ विश्व राजनीति में चाइना के बढ़ते प्रभाव के बीच रूस की तानाशाही ने दुनिया को बहुत कुछ सोचने पर मजबुर कर दिया है । अफगानिस्तान से अमेरिका का भागना , यूक्रेन पर हमला होने के बावजूद अमेरिका द्वारा पहले तो उसे भरोसा दिलाना, बाद में अब केवल टुकुर- टुकुर देखना साबित करता है कि ,विश्व राजनीति में अमेरिका के पांव अब कमजोर पड़ रहे हैं । 

चीन द्वारा रूस को बिना मांगे ही अप्रत्यक्ष रूप से तो समर्थन करना लेकिन यूएन सुरक्षा परिषद में लाएं गए निंदा प्रस्ताव पर वोट न करना , ऐसा लगता है चीन भी निकट भविष्य में कोई बड़ी हरकत कर सकता है या उसकी योजनाओं में यह ज़रूर होगा , विशेष कर ताईवान और भारत के संदर्भ में , जैसा कि पूर्व में उसकी बदमाशियां देखी गई है । 



हमारे देश के लिए हमेशा की तरह एक निर्णायक बनकर खड़े रहने की भूमिका वाला यह दौर नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी को इस समय विश्व के सभी देशों से आग्रह कर शांति व्यवस्था स्थापित करने के प्रयास तेज करने चाहिए । इससे भी पहले उन्हें भारतीय प्रवासियों को शीघ्र भारत लाएं जाने के पुख्ता इंतजाम करने चाहिए मगर रूस द्वारा युद्ध की घोषणा हो चुकी है ऐसे में युक्रेन में दाखिल होना अब खतरे से खाली नहीं है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर को जब रूसी सैना ने यूक्रेन की सीमा पर जमावड़ा डाल दिया था उससे पहले ही माहौल को भांप कर इस दिशा में प्रयास तेज करने चाहिए थे । 





पाकिस्तान की रूस से बढ़ती नजदीकियों को देखें तो चीन और रूस की घनिष्ठता या उनके बीच भाई चारा बहुत हद तक बढ़ा है वहीं हमने उस अमेरिका से आपसी रिश्ते सुदृढ़ करने के प्रयास किए हैं जो उतना अब ताकतवर नहीं रहा हैं , हम पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के समय से ही देख रहे हैं कि अमेरिका अब नेशन फर्स्ट थ्योरी पर काम कर रहा है और उसी को दोहराने का काम राष्ट्रपति जो बाइडेन भी कर रहे हैं मतलब कि अब बिना अमेरिका को लाभ मिले वो कोई भी ऐसा कदम नहीं उठायेगा कि उनका धीरे -धीरे डूबता हुआ ये देश तुरंत या अचानक ही डूब जाएं। 

विश्व के छोटे देशों की सुरक्षा के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं दिखाई पड़ते , अब तक रूस और अमेरिका ऐसे किरदारों में रहे हैं कि विश्व राजनीति में कहीं न कहीं इन दोनों का दखल कायम रहा है । भारत - पाकिस्तान या भारत -चीन के मध्य होने वाली तकरारों के पीछे भी ये दो बड़े देश बयानबाज़ी कर माहौल को उकसाते हैं । 

बावजूद इसके हम चाइना से बेधड़क व्यापार कर रहे हैं , वहीं पाकिस्तान के साथ बिरयानी खाने के बाद भी व्यापार बंद है , दोनों देश (भारत- पाकिस्तान )मिलकर एक महासंघ बनाएं तो काफ़ी कुछ सुलझ सकता है मगर  दोनों देशों के राजनयिकों की इच्छा शक्ति शिथिल पड़ी है । महासंघ में बांग्लादेश , अफगानिस्तान , श्रीलंका , म्यांमार , नेपाल , भूटान और मालदीव शामिल किए जा सकते हैं । महासंघ इन देशों के बीच मतभेदों को सुलझाने का प्रयास करें जिसमें व्यापार , खेल , संगीत , साहित्य , सांस्कृतिक और अंतरराष्ट्रीय रिश्तों में शांति बहाल कर विकासात्मक गतिविधियों को बढ़ावा दें ।

जैसा कि इतिहास रहा है यानि अब तक हुए युद्धों ने हमें , उनमें भले ही हम जीते हो या हारे हो , ने बहुत बड़े सबक सिखाएं हैं । नेताओं के ग़लत फैसलों से युद्धोपरांत भयानक खामियाजे देश के वीर सैनिकों ,  उनके परिजनों ने , उनकी पीढ़ियों ने झेले हैं और अभी भी झेल रहे हैं ।  लगातार पाकिस्तान से बिगड़ते हमारे संबंध चाइना को उसके ओर करीब लाता है जो कि होना नहीं था । हम एक देश के दो टुकड़े बनकर साथ रहने का कभी कोई ठोस सामूहिक प्रयास नहीं किया । इसमें दोनों देशों की कुछ कमियां रही हैं और पाकिस्तान ने वादाखिलाफी कुछ ज़्यादा ही की है इसलिए आज तक बात नहीं बन पाई।

 अभी दो विचारधाराओं के मध्य एक बड़ा अन्तर है लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विदेश नीति में आपको इनसे ऊपर उठकर सोचना पड़ता हैं । दो देशों के आपसी रिश्तों के बीच समग्र दृष्टि के साथ तालमेल बिठाने का प्रयास करते हैं । भारत -पाकिस्तान के सैनिकों को हिमालयी बर्फ ने जितना निगला है उतने सैनिक तो युद्धों में शहीद नहीं हुए हैं । नेताओं की हठधर्मिता सैन्यकर्मियों,  उनके परिवारों, स्थानीय जनता और राष्ट्र के दूरगामी विकास में बड़ी बाधाएं उत्पन्न करती हैं ।

हम अधिकांश भारतीयों को आज भी लगता है कि भारत पर कोई बड़ा संकट आयेगा तब रूस मदद ज़रूर करेगा तो , विचारणीय बिन्दु यह है कि हम आखिर कब तक रूस या अमेरिका जैसे देशों पर निर्भर रहेंगे कि वो संकटकालीन परिस्थितियों में हमारी मदद करें विशेषकर युद्धोन्माद के समय में। चाईनीज सेना द्वारा भारतीय सीमाओं के साथ छेड़छाड़ और ताईवान को धमकाने-हथियाने की कोशिशें आखिर हम कैसे नज़र अंदाज़ करें ! 

चीन द्वारा अरूणाचल प्रदेश में भारतीय गांवों पर कब्जा करने का क्रम जारी हैं , वहीं पेंगोंग लेक के उत्तरी छोर और डोकलाम में हुई सैन्य झड़पों को हम कमतर कैसे आंक सकते हैं ? शांति से सोचें तो लगता है कि दुनिया में एक नये तरह का ध्रुवीकरण फिर से पांव पसार रहा है , देख लीजिए दोस्तों मनुष्यता बर्बरताओं में कैसे और कितनी शीघ्र बदलती है ! सभ्यताओं - संस्कृतियों और देशों का दमन आखिर कैसे होता है ! तानाशाहों की क्रूरताओं को नहीं देखा हो तो देख लीजिए कि कितने भयानक होते हैं तानाशाहों के फितूर ! दुनिया के लोगों को कोरोना से जितना खौफ नज़र नहीं आया उससे कहीं गुना अधिक फिलहाल का यह मंजर दिखाई पड़ता है ।

आप सभी दोस्तों की राय भी जानना चाहूंगा कि आप क्या सोचते हैं इस क्राइसिस के बारे में , अपने विचार व्यक्त करें ।

रक्षित परमार

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