बदलाव की राह छोड़ बदले की भावना से कारवाई करती केंद्र की सरकार
भारत में जब भी कोई राजनीतिक दल बहुमत में आता है तब लोगों में एक बड़ी उम्मीद दिखाई देती हैं कि वाकई अब अच्छा काम देखने को मिलेगा । हम देश की जनता का यह भ्रम बहुत बार टूटता जाता है जब बहुमत वाली सरकारें पक्ष -विपक्ष में भेद रखते हुए काम करती हैं । बहुमत वाली सरकारें चाहती हैं संसदीय कार्यवाही में उनका ही एकाधिकार रहे और वो भी दीर्घकालिक हो ऐसा करने के लिए वो खरीद फरोख्त का सहारा लेती हैं। विधायकों को खरीदने के लिए अनेक प्रलोभन , अकूत धन दौलत , राजनीतिक लाभ और भ्रष्टाचार से बचाव के हथकंडे अपनाए जाते हैं । हालिया खबरों पर ध्यान दें तो ईडी , सीबीआई और इनकम टैक्स विभाग के माध्यम से सरकार ने विपक्षियों को जिस तरह से परेशान कर रखा है स्पष्ट है कि विपक्ष को निष्क्रिय करके सरकार लम्बे समय तक सत्ता में काबिज रहना चाहती है। ऐसे में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और यूपीए अध्यक्ष रही सोनिया गांधी को ईडी कार्यालय बुलाएं जाने पर कांग्रेसियों ने दिल्ली में भारी विरोध प्रदर्शन कर चिंता जाहिर की हैं । भारत के लोकतंत्र के समक्ष बढ़ती इस प्रवृत्ति को एक स्वच्छ परंपरा तो कतई नहीं माना जा सकता है। हाल ही में पूर्व सीजीआई एनवी रमन्ना ने भी अपने वक्तव्य में कहा कि सरकार और विपक्ष के बीच बढ़ता ये कम्यूनिकेशन गैप लोकतंत्र के विकास में बाधा उत्पन्न करेगा ।
जाहिर है कि ये आरोप -प्रत्यारोप केवल भाजपा सरकार पर नहीं है अपितु इससे पूर्व में कांग्रेस सरकारों में भी ऐसी ही एक पक्षीय कारवाइयां देखने को मिली हैं। कांग्रेस शासन के समय की गई कार्रवाइयों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष को सबक सीखने की तरह देखते हैं और लगातार हम उसका भी प्रभाव देख ही रहे हैं। विगत वर्षों में कर्नाटक , गोवा , मणिपुर , मध्यप्रदेश , महाराष्ट्र में जिस तरह से गैर बीजेपी सरकारें गिरी हैं स्थिति देश के सामने हैं । मतदाताओं के वोट का महत्व भले ही हम कितना ही आंकते हो लेकिन यह प्रवृत्ति साबित करती है कि देश के मतदाताओं के मत का सम्मान अब हाशिए पर जा रहा हैं। विधायक खरीद फरोख्त में अपने दल को रातों रात बदल रहे हैं और अपने निजी राजनीतिक -आर्थिक हितों को साध रहे हैं वहीं जनता की सहमति आज संकट के दौर से गुजर रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व में दिए अपने भाषणों में बदले की भावना छोड़ बदलाव की बात कही थी लेकिन अब ये रवैया कुछ आश्चर्यजनक स्थिति पैदा करता है।
बहरहाल विपक्ष के सभी बड़े नेताओं और गैर बीजेपी राज्य सरकारों के लिए सरकारें बचा पाना आज मुश्किल काम होता जा रहा है । विपक्ष में बैठे अधिकतर मंत्रियों , प्रभावशाली नेताओं के खिलाफ ये मुहिम बड़े स्तर पर देखने को मिल रही हैं। सबसे पहले इसकी शुरुआत होती हैं पश्चिम बंगाल से , मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ सीबीआई की एंट्री, वहां के नेताओं के खिलाफ कई तरह की कार्रवाई देखने को मिलती हैं हालांकि इन सबके पीछे कोई न कोई मूल वजह भी है।
विपक्षी सरकारों द्वारा केंद्र के दिशानिर्देशों को मानने से इनकार और आनाकानी भी इस खेल के पीछे की एक बड़ी वजह है जो कि प्रधानमंत्री को रास नहीं आता है । गौरतलब है कि राजस्थान में कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के भाई अग्रसेन गहलोत के घर पर सीबीआई का पड़ता है , महाराष्ट्र में निर्वतमान शिवसेना सरकार के केबिनेट मंत्री रहे संजय राऊत की ईडी द्वारा गिरफ्तारी। महीने भर पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और वलसाड (केरल) के वर्तमान सांसद राहुल गांधी को नेशनल हेराल्ड के मालिकाना हक संबंधी मामले में ईडी ( एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट) द्वारा बारी -बारी से कार्यालय बुलाकर पूछताछ की गई है जो कि अब तक बेनतीजा रही है। अभी दिल्ली सरकार में मनीष सिसोदिया के खिलाफ शराब नीति (Excise Policy) बदलने को लेकर सीबीआई की बड़ी कार्रवाई चल रही है ।
इन दिनों दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने विधायकों के साथ राजकोट में डेरा डाले हुए हैं। उन्हें भी डर सता रहा है कि कहीं बीजेपी उनके विधायकों को खरीद न लें । केजरीवाल ने मोदी सरकार को घेरते हुए गुजरात में अगला मिशन आगामी चुनावों पर ध्यान केंद्रित लिया है । हर सप्ताह केजरीवाल गुजरात का दौरा कर रहे हैं , बैठकें कर रहे हैं इसका असर ये है कि लगातार बीजेपी और कांग्रेस से बड़ी संख्या में लोग आम आदमी पार्टी से जुड़ रहे हैं ।खरीददारों और बिकने वालों का ये खेल बड़ा निराला है जिसका पैसा भारत की ईमानदार जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा है जिसे आज खरीद फरोख्त में लगाया जा रहा है । सवाल है कि जनता के काम आखिर कौन करेगा अब ? सभी राजनीतिक दलों ने लुभावने वादें करके जनता को ठग लिया है और हक्की- बक्की जनता के पास अब सहारा केवल यह बचता है कि वो अपने वोट की कीमत को अब समझ जाएं उसी में उसकी भलाई है ।
रक्षित परमार , उदयपुर राजस्थान
प्रिय संपादक महोदय ये मेरे निजी विचार हैं , इससे पहले भी मैंने जनसत्ता के संपादकीय पृष्ठ पर चौपाल में कुछ चिट्ठियां छपी हैं । मगर अब मैं उम्मीद करता हूं सर कि मुझे थोड़ा ओर स्पेस दिया जाएं ताकि मैं अपनी बात को जनसत्ता जैसे देश के एक प्रतिष्ठित अखबार के माध्यम से जनमानस तक पहुंचा सकूं ।
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