क्रिकेट की दुनिया से घूमते हुए भारत एक दृष्टि - रक्षित परमार

 मैं धोनी का फैन हूं लेकिन कभी सोशल‌ मीडिया पर धोनी के बारे में, उनकी कप्तानी और उनके व्यवहार के बारे में कुछ लिख नहीं पाया । मेरी फेवरिट टीम के खिलाडी वैसे सौरव गांगुली, सचिन , विरेन्द्र सहवाग, युवराज सिंह, मोहम्मद कैफ, वीवी एस लक्ष्मण, अनिल कुंबले, हरभजन, सिंह,‌ ज़हीर खान और धोनी साहब है। उसके बाद क्रिकेट मेरे जीवन से लगातार गायब होता जा रहा है। अभी के प्लेयर भले ही अच्छा खेल रहे हो लेकिन 2003 और 2010 के बीच में हुए क्रिकेट मैचों जैसा रोमांच अब बचा नहीं है मेरे‌ लिए क्रिकेट में । विश्व के स्तरीय खिलाड़ियों को एक साथ देखने का अलग ही सुकून था । भारत की टीम उस दौर में भले ही थोड़ी कमजोर थी लेकिन उस समय के ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों का स्तर भी तो कमाल का था ‌। 


ऑस्ट्रेलिया के एडम गिलक्रिस्ट, मेथ्यू हैडन , जेशन गिलेस्पी, एंड्र्यू साइमंड्स, रिकी पोंटिंग, शेन वॉर्न, ग्लेन मैकग्राथ जैसे प्लेयर अब मैचों में कहीं नहीं दिखते हैं । बैटिंग, फिल्डिंग, बोलिंग और हर मैच को केवल जीतने के लिए उतरने वाली ये ऑस्ट्रेलियाई टीम विश्व की सभी टीमों के लिए खासतौर पर ये खिलाड़ी बहुत भारी पड़ते थे । इनको आउट करना भी दूसरे बोलर्स के लिए एक बड़ी उपलब्धि हुआ करती थी। भारत के सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण , गांगुली, हरभजन, ज़हीर, कुंबले और बाद में धोनी ने विश्व भर में अपनी बल्लेबाजी और गेंदबाजी की धाक जमाई। इंग्लैंड के एंड्र्यू फिल्नटोफ , दक्षिण अफ्रीका के हर्शल गिब्स, श्री लंका के मरवन अट्टापट्टू , सनत जयसूर्या, चामिंडावास , कुमार संगकारा, मुथैया मुरलीधरन और लसिथ मलिंगा मेरे पसंदीदा खिलाड़ी रहे हैं। उसी तरह के पाकिस्तान के इंजमाम उल हक अगर जम गये तो आउट करना ही मुश्किल था , सबसे खास तो शाहिद आफरीदी । शोएब अख्तर, सईद अनवर , अब्दुल रज्जाक, सलमान बट , शोएब मलिक मेरे पसंदीदा खिलाड़ी थे । न्यूजीलैंड के शेन बोंड दुनिया के सबसे तेज़ गेंदबाजों में से एक थे । विकेटकीपर में सबसे बढ़िया एडम गिलक्रिस्ट, मार्क बाउचर , महेंद्र सिंह धोनी, पार्थिव पटेल थे ।  


राहुल द्रविड़ और मोहम्मद कैफ ये दो खिलाड़ी अपनी शांति प्रियता के लिए जाने जाते थे । गौतम गंभीर जितना मैदान में शानदार खेल रहे थे उतने अच्छे नेता राजनीति में साबित नहीं हो पाएं भले ही वो जीते हो। पाकिस्तान की हालत समझिए कि वहां इमरान खान एक प्लेयर वहां का प्रधानमंत्री बन जाता है क्या हम भारत में किसी खिलाड़ी के पीएम बनने का ख्वाब किसी ने देखा है ? पाकिस्तान खेलप्रेमियों का देश हैं और भारत भी ! खेलप्रेमियों ने एक खिलाड़ी जब वो प्रधानमंत्री के दावेदार के रूप में खड़ा हुआ तो‌ लोगों ने उसे जीता दिया और परिणाम आज पाकिस्तान भुगत भी रहा है। 


बहरहाल यह भारत में नामुमकिन सा लगता है क्योंकि भारत के लोग एक खिलाड़ी में इतना भी भरोसा नहीं कर सकते हैं कि मैच जिताने वाला देश भी चलाएं । हमारे यहां पर लोग मंजे हुए नेता को देश की बागडोर देने में विश्वास करते हैं। लेकिन अगर कोई नेता मंजा हुआ नहीं भी है और वो घर बैठे -बैठे एक दिन पुरजोर दावा ठोक दें कि पार्टी के पीएम के उम्मीदवार तो हम ही हैं तो हम भारत के लोग मूकदर्शक बनते भी देर नहीं लगाते हैं। एक राज्य को बेहतर दिखाने वाले को हम देश का पीएम तक बनवा सकते हैं भले ही वो कभी केंद्रीय मंत्री भी न रहे हो ! आम आदमी पार्टी अभी एक पढ़ें लिखे और अनपढ़ पीएम को लेकर लगातार तंज़ कसती नज़र आ रही हैं लेकिन वो‌ खुद अपने पढे लिखे मंत्री को जेल से बाहर निकलवाने में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं ले रही हैं। बीजेपी चाह रही थी कि आम आदमी पार्टी के मुखिया पर आरोप साबित हो जाएं तो हम देश‌ भर में भ्रष्टाचार मिटाने की मुहिम को बल दे सकते हैं लेकिन ये दांव कुछ उलटा ही पड़ गया है । सीबीआई की कारवाई मनीष सिसोदिया के खिलाफ हुई और देखते ही देखते मनीष सिसोदिया जेलों की सलाखों में कैद हो गये ‌हैं । देश की जनता में कुछ ऐसी सुगबुगाहट है कि सीबीआई ने मनीष सिसोदिया जैसे ईमानदार आदमी को अंदर कैसे डाल दिया जबकि दोषी तो अरविंद केजरीवाल है क्योंकि घोटाला या गबन आखिर किस सरकार में हुआ है अगर सचमुच में हुआ है तो ? 


आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने तुरंत ही मनीष सिसोदिया से इस्तीफा मांग लिया जबकि बीजेपी की मंशा थी कि ये आरोप अरविंद केजरीवाल पर लगे ताकि भ्रष्टाचार के आरोप साबित होते ही सरकार को इस्तीफा देना पड़े । अरविंद केजरीवाल चालाक किस्म के पढ़े लिखे मुख्यमंत्री हैं इसलिए लगातार अभी भी इस बात का तंज़ भी कसते नज़र आते हैं कि अनपढ़ व्यक्ति के पीएम बनने से देश को आज नुकसान पहुंच रहा है।‌ जबकि भ्रष्टाचार में केजरीवाल पर भी आरोप लग रहे हैं । हाल‌ ही में चुनाव आयोग ने जो तथ्य जारी किए हैं उनके मुताबिक आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी होने का दर्जा मिल गया है जबकि तृणमूल, माकपा जैसी पार्टियां क्षेत्रीय दल बन‌ कर रह गई हैं। बसपा अभी भी एक राष्ट्रीय पार्टी के रुप में स्थापित हैं जो कि बसपा सुप्रीमो और पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए सुखद समाचार हैं ।


बीजेपी की यह ईमानदारी कुछ ऐसी है कि भरोसा कर पाना इसलिए थोड़ा मुश्किल है क्योंकि बीते सालों और हालिया घटनाक्रमों से पता चलता हैं कि विपक्ष का जो भी नेता प्रधानमंत्री के खिलाफ बोलता है तो कुछ ही दिन बाद सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट उनके घर पहुंच जाते हैं । संजय राऊत, कपिल शर्मा, राहुल गांधी, सोनिया गांधी, ममता बनर्जी, लालू प्रसाद यादव , तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, राजस्थान में अशोक गहलोत के भाई के घर पर और भी दक्षिण के बड़े नेताओं के खिलाफ केवल इसलिए कारवाईयां हुई कि वे नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोले थे । सांच को आंच नहीं की कहावत तो सुनी होगी आपने तो फिर प्रधानमंत्री को इन सबसे डरने की भला क्या आवश्यकता है? मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ तब तक हम मान‌ सकते थे जब तक देश का मुखिया यानि प्रधानमंत्री, न्यायालय के सीजीआई , गृहमंत्री, विदेश मंत्री, रक्षा और वित्त मंत्री समय -समय पर मीडिया के बीच आकर स्वतंत्र रूप से जनता की सरकार होने का दायित्व निभाते हुए सरकार में हो रही गतिविधियों से मीडिया के माध्यम से देश से रूबरू करवाते।


 अभी वो पारदर्शिता आपको कहीं पर भी देखने को नहीं मिलेगी । प्रायोजित मीडिया चैनल जिनको पहले से ही हर तरह से पाबंद किया जा चुका हैं , आसपास मंडराते दिखाई देते हैं। पसंदीदा पत्रकारों को जिन्हें रवीश कुमार ने गोदी मीडिया नाम से सम्मानित भी किया है उनको पहले से ही तैयार करके मनचाही जगह पर लाकर मनचाहा भाषण देने के लिए बुला दिया जाता है । दीपक चौरसिया और प्रधानमंत्री के बीच हुए साक्षात्कार को अगर आप देखेंगे तो पाएंगे कि जो सवाल प्रधानमंत्री को पूछे जाने हैं वो पहले से ही प्रधानमंत्री के हाथ में एक कागज़ है उस पर लिखे हुए दिखाई दे रहें हैं।

  एक तरफ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार विपक्ष पर हमलावर होते दिखाई पड़ते हैं कांग्रेस सहित विपक्षी दलों को परिवार वाद, भ्रष्टाचार के नाम पर अभी भी बुरा भला कहने से नहीं चुकते हैं। हाल ही में एक समारोह में प्रधानमंत्री ने सीबीआई के उच्च अधिकारियों को अपनी कारवाई जारी रखने और किसी से नहीं डरने की बात कहीं हैं जबकि ये बात भी सच है कि अगर प्रधानमंत्री ईमानदार है तो अपनी ये कारवाईयां भी ईमानदारी से देश के समस्त राजनीतिक दलों पर लागू होनी चाहिए केवल विपक्ष पर ही क्यों!


  पिछले कुछ सालों में देखें तो मान्य मोदी जी भी कांग्रेस की राह पर चल रहे हैं जैसा कभी कांग्रेस पार्टी किया करती थी वैसी ही कारवाई आज बीजेपी करने में मस्त हैं जिसे हम बदले की राजनीति ही कहेंगे। बदलाव की बात और सबका साथ -सबका विकास की बात जनता से कह कर सत्ता के गलियारों तक पहुंची नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार नरेंद्र मोदी के गुजरात मॉडल से तो कब ही भटक चुकी हैं। एक तरफ देश में महंगाई की मार , बेरोज़गारी का आलम , देश में लगातार बढ़ती साम्प्रदायिकता, धार्मिक ध्रुवीकरण , आर्थिक अस्थिरता और ऊंच नीच के नाम पर देश में बढ़ता उत्पीड़न, विपक्षी सरकारों को षड्यंत्रों से सत्ता से बेदखल करने के प्रयासों से भारत में आज लोग बीजेपी, नरेंद्र मोदी और समर्थित सरकार की खामियों पर बातचीत करने से कतराने लगे हैं। बीजेपी में अभी केवल एक ही नेता ऐसा हैं जो केवल विकास की बात कर अडिग है भले ही पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा दरकिनार किएं जाने की अटकलें लगाई जा रही हो वो हैं केबिनेट मंत्री नितिन गडकरी। एक तरफ संसदीय गरिमाएं लगातार तार -तार हो रहीं हैं वहीं लोकसभा सांसदों के माइक बंद कर देने की घटनाओं ने देश के नागरिकों को विचलित किया है । 


सरकार समर्थकों के लिए यह भले ही चुटकी लेने के पल‌ हो परंतु संविधान के प्रतिकूल हो रहीं गतिविधियों से देश का आम व्यक्ति घबराया हुआ है। एक तरफ़ राष्ट्रवाद से अति राष्ट्रवाद और धार्मिकता से धर्मांधता की बढ़ते जनमानस के लिए यह एक संक्रमण का काल है कि क्योंकि बीजेपी के कोर एजेंडा में धर्म सबसे ऊपर है यानि धर्म के नाम पर जो कुछ भी होगा उसका सारा श्रेय और फल बीजेपी के हित में ही जाना चाहिए इसलिए बीजेपी के नेता विशेष रूप से इसका प्रशिक्षण भी ले रहे हैं कि धर्म के प्रत्येक मुद्दे पर पकड़ बनानी है। भारत में अभी हिंदू मुसलमानों को लेकर अनावश्यक वातावरण ख़राब करने के लिए सबसे अधिक नेताओं के भाषण जिम्मेदार है , चुनाव आयोग, सरकार की भी उसमें रूचि होने , इसके इतर न्यायालयों और पुलिस विभाग सुस्ती ने देश को आज एक चौराहे पर खड़ा कर दिया है कि लोग जो कभी देश के बारे में सोचते थे‌, अच्छे रोजगार, अच्छी शिक्षा, अच्छी चिकित्सा और अच्छे अनुसंधानों के बारे में सोचते थे वे आज अचानक धर्म पर केंद्रित होने लगे‌ हैं । सब जानते हैं ये मुद्दे देश को‌ पीछे धकेलने, ख़ासकर पिछड़े वर्गों और मुसलमानों को आपस में लड़ाने की योजना का हिस्सा है। समझदार वर्ग , समझदार लोग ऐसी घटनाओं से दुरियां बनाते हैं और अपने देश के बारे में, देश के सभी संसाधनों के बारे में जो भी हमें चारों तरफ दिखाई देते हैं की सुरक्षा को‌ लेकर चिंतित हैं। नफ़रत ज़हर और आग की तरह चारों तरफ फैलतें है और देखते ही देखते चारों तरफ केवल बर्बादी । सालों बाद होश आता है कि काश वो‌ उन्माद नहीं किया होता! बाद के पछतावों से क्या मिलता है केवल निराशा और कुछ नहीं! 


रक्षित परमार 

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